Friday, 28 March 2014

Rahul Gandhi to address 100 poll rallies, highlight UPA achievements

Rahul Gandhi to address 100 poll rallies, highlight UPA achievements

"He will address over 100 rallies and meetings across states. There will be large-scale mobilisation of resources as he plans to address three to four rallies every day," a source involved in the campaign told Mail Today.

Besides attacking the divisive agenda represented by BJP, Rahul will focus on the UPA government's rights-based approach to expand the social security network in the past 10 years, the sources said.

Rahul is also likely to highlight the need to uplift 70 crore people who are neither poor nor middle class during the campaign. As usual, the interests of youth and women will figure majorly in his speeches.


In the initial phase, he will cover states like MP, UP, Orissa, Jharkhand, Chhattisgarh and Kerala. While Rahul is scheduled to address rallies at Wardha and Gadchiroli in Maharashtra on March 28, he will also hold a public meeting at Satna in Madhya Pradesh. On March 29, Rahul is expected to campaign in Ghaziabad for party nominee Raj Babbar, whose seat was changed from Firozpur

Tuesday, 18 March 2014

पहले से बहुत हुआ है चुनाव प्रणाली में सुधार

देश में चुनाव प्रणाली में कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये हैं . हालांकि चुनाव सुधार को लेकर अब भी बहुत नये कदम उठाने की जरूरत है . चुनाव सुधार की संभावनाएं भी हैं , लेकिन राजनीतिक कारणों से कई जरूरी कदम अब तक नहीं उठाये गये जा सके हैं . इसे लेकर सत्ता में रहने वाली राजनीतिक पार्टियों के साथ - साथ विपक्षी और दूसरी पार्टियों की भी आलोचना होती रही है .


चुनाव सुधार को लेकर देश भर में बहस चल रही है . सुझाव भी आ रहे हैं . कई जनसंगठन इसे लेकर दबाव बनाने में लगे हैं . इन सब का मानना ​​है कि चूंकि सत्ता में बड़ी ताकत होती है . इसलिए वैसे तत्व और वर्ग चुनाव के जरिये सत्ता और ताकत हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार होते हैं , जो जनहित के लिए नहीं हैं . इनमें पूंजीपति भी हैं और अपराधी भी . ऐसे तत्वों ने शुरू से जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का अतिक्रमण किया है . कहीं पैसे के बल पर . कहीं बाहुबल से . कहीं अपराध और हिंसा के जरिये और कहीं शासन - प्रशासन की सांठ - गांठ से . अब तक चुनाव सुधार में इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखा गया है , लेकिन अब भी सुधार को पूर्ण नहीं कहा जा सकता .

अपराधियों पर नकेल

चुनाव सुधार के तहत अब दो साल से अधिक की सजा पाने वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया जा चुका है . राजनीतिक सुधार की दिशा में इसे नये युग की शुरुआत माना जा रहा है . इसकी वजह से कई बड़े नेताओं को संसद की सदस्यता त्यागनी पड़ी है . राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में इससे मदद मिलेगी .

अनुभव ने बताया , चुनौतियां कम नहीं

दरअसल चुनाव प्रणाली को देश को लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करने और उसे जारी रखने के लिए स्वीकार किया गया था . एक आदर्श सोच के साथ यह प्रणाली तैयार की गयी थी . इसमें देश के हर वयस्क नागरिक को यह अधिकार दिया गया कि वे शासन चलाने के लिए दलों और प्रतिनिधियों के चुनाव के लिए गुप्त तरीके से अपनी राय बता सकें . वयस्क नागरिकों का बहुमत जिसे मिले , वह चुनाव जीत का संसद या विधानमंडल पहुंचे और वहां जिस दल या गठबंधन के निर्वाचित सदस्यों की संख्या सबसे अधिक हो , वह सरकार बनाये , लेकिन जो अनुभव रहा , वह इसके विपरीत था . इसने कई चुनौतियां और जटिलताएं पैदा कीं . जैसे कमजोर वर्ग के लोगों को वोट देने के अधिकार से रोकना , चुनाव में हिंसा , धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल , गलत तरीके अपना कर चुनाव जीतने की कोशिश , फर्जी वोट और बूथ कब्जा वगैरह . इस ने संविधान के उस संकल्प पर आघात किया , जिसमें निष्पक्ष और भयमुक्त होकर देश के सभी नागरिकों को अपने प्रतिनिधि को चुनने का अवसर देने की गारंटी दी गयी . दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत है . देश की आबादी और उस हिसाब से वोटरों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई . इस ने भी चुनौतियां पैदा कीं . इसे देखते हुए कई कदम उठाये गये , जो चुनाव में सुधार की दृष्टि से बेहद अहम हैं . इसमें चुनाव खर्च की सीमा ( अब लोकसभा चुनाव में 70 लाख ) और खर्च का हिसाब देने की बाध्यता भी शामिल है .

मतपत्र की जगह इलेक्ट्रॉनिक मशीन

पहले वोट देने के लिए मतपत्र का इस्तेमाल होता था . यह एक पुरानी व्यवस्था थी . इसमें कई त्रुटियां आ गयी थीं . एक तो इससे मतदान कराने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल थी . वोटर की संख्या बढ़ने से यह जटिलता और बढ़ी . फर्जी वोटिंग और बूथ कब्जा करने में इससे आसानी होती थी . मतों की गिनती का काम भी जटिल था . मतों की मैनुअल गिनती में धांधली की शिकायतें खूब आती थीं . वोट गिनने में समय भी एक से अधिक दिन का लगता था . उसमें पारदर्शिता और निष्पक्षता की गुंजाइश कम रह गयी थी . समय और तकनीकों के विकास को देखते हुए बदलाव की बड़ी जरूरत थी . इस जरूरत को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल शुरू हुआ है . यह चुनाव सुधार की दिशा में बड़ी पहल साबित हुई है . इसमें मतदान की सभी गतिविधियां आसानी से रिकॉर्ड हो जाती हैं . मतों की गिनती में पूरी पारदर्शिता होती है . समय की बचत होती है . इसकी बदौलत चुनाव के नतीजे अब जल्दी आ रहे हैं . एक दिन में मतगणना का काम पूरा हो पा रहा है . साथ ही आदमी भी कम लगाने पड़ रहे हैं . इससे व्यवस्था की जटिलता भी कम हुई है . हालांकि इस व्यवस्था में भी सुधार की मांग हो रही है . यानी निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीन का उपयोग अंतिम व्यवस्था नहीं है . मतदान केंद्रों पर वैकल्पिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को आपात स्थिति के लिए रखा जाता है . ऐसी मशीनों के दुरुपयोग की आशंकाएं पैदा होती रही हैं . इसे लेकर कई गंभीर सवाल उठे हैं . पिछले चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी छेड़छाड़ की शिकायतें आयी हैं . जिस इलेक्ट्रॉनिक तकनीक से निष्पक्ष मतदान की गारंटी देने की कोशिश हुई , उसी इलेक्ट्रॉनिक तकनीक से इस व्यवस्था और गारंटी में सेंधमारी हुई है . अब इसे दूर करने के उपायों पर देश भर में बहस का दौर जारी है . इस पर भी कई सुझाव आये हैं .

सच है जो , वह दिखेगा

चुनाव सुधार के तहत उम्मीदवारों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी सूचनाओं को सार्वजनिक करने की व्यवस्था की गयी है . सभी स्तर के चुनावों में प्रत्येक उम्मीदवार को व्यक्तिगत जानकारी अनिवार्य रूप से सार्वजनिक करना है . इसमें अपनी और परिवार के सदस्यों की आय , चल - अचल संपत्ति , अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे , बैंक से प्राप्त कजर् , सरकारी बकाया वगैरह शामिल है . यह सारी जानकारी शपथ - पत्र के जरिये दाखिल करना है . उनके शपथ - पत्र को आयोग के वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है और अखबारों को उसकी प्रति बांट दी जाती है , ताकि आम जनता को उसके जरिये यह जानकारी मिल सके . ऐसे दस्तावेज सार्वजनिक हैं . उम्मीदवार के बारे में सभी तरह की सूचनाएं , चाहे वह व्यक्तिगत हों या सार्वजनिक , जनता को जानने का हक है . इस हक को इसके जरिये पूरा कराया जा रहा है .

मिली सुरक्षा , तो वोट प्रतिशत बढ़ा

अब पहले के मुकाबले मतदाताओं को वोट डालने में ज्यादा सुविधा और सुरक्षा मिल रही है . मतदाताओं में जागरूकता भी आयी और वैसे मतदाता भी अपने मत की अहमियत समझने लगे हैं , जो अब तक इसे लेकर गंभीर नहीं थे . इसका प्रभाव यह हुआ है मतदान का प्रतिशत बढ़ा है . यानी हर क्षेत्र में पहले से ज्यादा वोटर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं . महिलाओं तथा सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों पर चुनाव आयोग की खास नजर रही है . आयोग ने उनके मताधिकार को सुनिश्चित करने के कई उपाय किये हैं . इसके तहत उन्हें पूरी सुरक्षा दी जा रही है . अब पहले की तरह जबरदस्ती वोट डलवाना आसान नहीं रहा है .

आदर्श चुनाव आचार संहितायह एक ऐसी व्यवस्था है , जिसमें उम्मीदवार और राजनीतिक दल चुनाव के दौरान अपने आचरण और व्यवहार को हर हाल में कानून और समाज के दायरे में रखने के लिए बाध्य हैं . अगर देखें , तो इसमें करीब - करीब वहीं सारी बातें हैं , जो समय - समय पर संसद द्वारा बनाये गये कानून में कही गयी हैं , लेकिन हम आम दिनों में उनकी अनदेखी करते हैं . जैसे सरकारी और निजी दीवारों पर नारे लिखना , पोस्टर चिपकाना या झंडा लगाना , देर रात लाउडस्पीकर बजाना या व्यक्तिगत आलोचना वगैरह .

Thursday, 13 March 2014

RG4India

In 1999, Rahul Gandhi, then 29, accompanied his mother Sonia Gandhi to a Congress party rally in Hisar, Haryana. While the leaders sat on the stage, Rahul was a bystander, preferring to absorb the hustings' atmospherics. Barely was the rally underway, he was seen lifting a white plastic chair from the crowd and taking it to the stage for Kartari Devi, a Congress legislative party leader who was standing on stage. Empathy is a trait in the Gandhi scion that stands out strongly in his years in public life, but little else in the persona of Rahul, the politician, is clear. In a recent interview with Arnab Goswami, an incisive and loud newscaster, the Congress party vice president was forthright for most parts but that was about it. He came across as inexperienced, with a limited worldview in realpolitik, and as an interviewee lacking in panache, street smarts or the ability to steer a conversation his way - all important ingredients in the making of a politician brand.
"What is Brand Rahul? The pitch is not clear," says Rasheed Kidwai, author and Sonia Gandhi's biographer, who was present at the Haryana rally, and has closely traced the journey of Rahul Gandhi as a politician . "In one-on-one he seems quite on the ball," says a well-followed communications expert, discounting a widely-held view that Rahul is a novice when it comes to getting his ideas across to the public.
A Delhi-based brand consultant, requesting anonymity, describes Rahul as open to new ideas and somebody who comes up with ideas that may seem out-of-the-box but are well thought-out. Almost everyone BT spoke with among those who have worked with Rahul agrees there are layers and layers to the personality of the Congress leader.
Rahul's ad blitz, said in some quarters to top Rs.500 crore in spending, has been written off already by brand experts as half-thought out, irrelevant, disjointed and late in its build-up. "They have successfully managed to keep the youth aspect alive but they are not playing it up enough," says image manager and Founder of Perfect Relations, Dilip Cherian. "He comes across as a young leader who is promising introspective change, while Modi is promising bigger and faster change."

Friday, 7 March 2014

सभी बैंकों के पास एजुकेशन लोन स्कीम


        तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पाने वालों के लिए बैंकों के पास एजुकेशन लोन की स्कीमें हैं. इन स्कीमों का लाभ युवा उठा रहे हैं. बैंक से एजुकेशन लोन लेना एक सरल प्रक्रिया है. यह वैसे  छात्र-छात्राओं को मिलता है, जो भारत के नागरिक हों और उस क्षेत्र में रह रहे हों, जहां के बैंक से लोन लेना चाहते हैं. लोन लेने के लिए जो शर्ते हैं, वे बहुत कठिन भी नहीं हैं. ये नियम सही छात्र-छात्रा के चयन में बहुत मददगार हैं.

इसमें पूरी पारदर्शिता बरतने का साफ-साफ निर्देश सभी बैंक प्रबंधन देता है. इसलिए एजुकेशन लोन के लिए किसी पैरवी या बिचौलिये की जरूरत नहीं पड़ती. आपको बस इतना साबित करना होता है कि आप मेधावी विद्यार्थी हैं और तकनीकी या व्यावसायिक शिक्षा पाने की योग्यता रखते हैं. आपने किसी ऐसे तकनीकी या व्यावसायिक संस्थान में नामांकन के लिए आयोजित चयन परीक्षा पास कर ली है. संस्थान ने आपके नामांकन की सहमति दे दी है और इस आशय का सबूत आपके पास है, जिसे आप बैंक को दे रहे हैं. जिस संस्थान में नामांकन के लिए आपका चयन हुआ है, वह केंद्र या राज्य सरकार के किसी अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त है या खुद सरकार के नियंत्रण में हैं. 


एक बार ही एजुकेशन लोन

एक विद्यार्थी को एक ही बार एजुकेशन लोन मिल सकता है. किसी भी एक बैंक या वित्तीय संस्थान से एजुकेशन लोन लेने के बाद आप न तो उसी दुबारा ले सकते हैं, न ही किसी और बैंक से.


लोन की वापसी

एजुकेशन लोन की वापसी के लिए आपको पर्याप्त समय मिलता है. पर्याप्त का मतलब है, जब तक आपका का कोर्स पीरिएड है, उतनी अवधि तथा कोर्स की अवधि पूरी होने के एक साल तक आपको लोन नहीं चुकाना होता है. उसके बाद आपको किस्तों में राशि लौटानी होती है, लेकिन अगर आपने इस बीच नौकरी हासिल कर ली है, तो उसके छह माह बाद से आपको लोन चुकाना पड़ता है. वैसे कुछ बैंकों के अपने भी नियम-कायदे हैं. इनकी जानकारी आप किसी भी बैंक की स्थानीय शाखा से भी प्राप्त कर सकते हैं और चाहें, तो इंटरनेट पर भी इसे देख सकते हैं.


एजुकेशन लोन पर ब्याज की दर

अलग-अलग बैंक के अपने-अपने ब्याज दर हैं. इसमें समानता नहीं है. इसलिए लोन लेने के पहले आप इस बात की भी पड़ताल कर सकते हैं कि किस बैंक से लोन लेने पर आपको कितना ब्याज चुकाना होगा. ब्याज की दरें भी घटती-बढ़ती रहती हैं. आप ब्याज दर की जानकारी के लिए भी बैंकों की नजदीकी शाखा से संपर्क कर सकते हैं या फिर इंटरनेट पर जाकर संबंधित बैंक के वेबसाइट देख सकते हैं. आपकी सुविधा के लिए हम प्रमुख बैंक, उनकी ब्याज दर और वेबसाइट की जानकारी यहां दे रहे हैं.